यह घटना आज भी बहस और विवाद का विषय है। आइए जानते हैं इस घटना के पीछे की पृष्ठभूमि और कारण।
नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 30 जनवरी 1948 का दिन एक बड़ा मोड़ था। इस दिन नई दिल्ली के बिड़ला भवन में महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम विनायक गोडसे ने गोली मारकर कर दी। यह घटना आज भी बहस और विवाद का विषय है। आइए जानते हैं इस घटना के पीछे की पृष्ठभूमि और कारण।
1. नाथूराम गोडसे कौन थे?
नाथूराम गोडसे एक मराठी ब्राह्मण थे, जो हिन्दू महासभा और आरएसएस से जुड़े रहे। वे एक पत्रकार और लेखक भी थे। उनका मानना था कि गांधीजी की नीतियों से हिंदुओं को नुकसान हो रहा है और पाकिस्तान के गठन में उनका बड़ा योगदान है।
2. गांधीजी पर लगे मुख्य आरोप
गोडसे और उनके समर्थकों का मानना था कि गांधीजी की नीतियाँ एकतरफा मुस्लिम तुष्टिकरण की ओर झुकी हुई थीं। उनके अनुसार:
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भगत सिंह की फाँसी: कई लोग मानते हैं कि गांधीजी अगर चाहें तो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी रुकवा सकते थे, लेकिन उन्होंने सक्रिय प्रयास नहीं किया। हालांकि, कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गांधीजी ने वायसराय से बात की थी, लेकिन वह विफल रहे।
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देश का विभाजन: 1947 में भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना। गोडसे का आरोप था कि गांधीजी ने मुस्लिम लीग और जिन्ना के दबाव में विभाजन स्वीकार किया।
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हिंदुओं की मौत: विभाजन के समय लाखों हिंदू और सिख मारे गए और बेघर हुए। गोडसे का कहना था कि गांधीजी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने पर जोर दिया, जबकि उस समय हिंदू शरणार्थी भूखे और बेसहारा थे।
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मुस्लिमों के लिए उपवास: गोडसे को लगता था कि गांधीजी हिंदुओं की पीड़ा से ज्यादा मुस्लिमों के लिए संवेदनशील थे और दिल्ली में दंगों के समय उन्होंने मुस्लिमों की सुरक्षा के लिए उपवास किया।
3. हत्या की योजना
गोडसे और उनके साथियों ने तय किया कि गांधीजी की हत्या करनी होगी ताकि हिंदुओं के "अपमान" का बदला लिया जा सके। 30 जनवरी 1948 की शाम प्रार्थना सभा में गोडसे ने गांधीजी के पास जाकर तीन गोलियाँ चलाईं। गांधीजी वहीं गिर पड़े और उनके मुँह से निकला – "हे राम"।
4. गोडसे का अदालत में बयान
गोडसे ने अदालत में कहा:
"मैंने यह काम हिंदुओं के हित के लिए किया है। गांधीजी के कारण देश का विभाजन हुआ, हिंदुओं का नरसंहार हुआ, और पाकिस्तान को आर्थिक मदद दी गई।"
उन्होंने कहा कि उनके मन में व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी, बल्कि वे राजनीतिक कारणों से प्रेरित थे।
5. नतीजा
नाथूराम गोडसे और उनके साथी नारायण आप्टे को अदालत ने फाँसी की सज़ा सुनाई। 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में दोनों को फाँसी दे दी गई।
6. आज की बहस
आज भी इस विषय पर अलग-अलग मत हैं:
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कुछ लोग गांधीजी को "राष्ट्रपिता" मानते हैं और कहते हैं कि उनकी नीतियाँ अहिंसा और शांति के लिए थीं।
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वहीं कुछ लोग गोडसे को "देशभक्त" मानते हैं, जो अपने धर्म और समुदाय के लिए लड़े।
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सच्चाई यह है कि उस समय देश सांप्रदायिक हिंसा, विभाजन और राजनीतिक दबाव से गुजर रहा था, और हालात बहुत जटिल थे।
निष्कर्ष
नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित और विवादित अध्याय है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि राजनीतिक मतभेद और साम्प्रदायिक तनाव किस तरह हिंसा को जन्म दे सकते हैं। इतिहास को समझने के लिए सभी पक्षों को पढ़ना और तथ्यों पर विचार करना जरूरी है।
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