जब दिल पति के साथ बंधा हो और शरीर किसी और की बाँहों में सुकून ढूंढे — तब स्त्री के भीतर एक ऐसा द्वंद शुरू होता है, जिसे न समाज समझता है और न ही वो खुद...
जब दिल पति के साथ बंधा हो और शरीर किसी और की बाँहों में सुकून ढूंढे
"जब दिल पति के साथ बंधा हो और शरीर किसी और की बाँहों में सुकून ढूंढे — तब स्त्री के भीतर एक ऐसा द्वंद शुरू होता है, जिसे न समाज समझता है और न ही वो खुद..."
"उस रात मोबाइल की स्क्रीन पर एक नाम चमका — और नेहा का दिल एक पल के लिए रुक सा गया..."
शादीशुदा ज़िंदगी की शांत लहरों में अचानक कोई भूला-बिसरा तूफान दस्तक दे गया था।
👩💻 नेहा — 31 साल की, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ज़िम्मेदार और समझदार पत्नी।
6 साल की शादी।
पति विवेक — भरोसेमंद, विनम्र, हर ज़रूरत को समझने वाला इंसान।
घर में कोई कमी नहीं थी —
लेकिन दिल में… एक अधूरी सी बेचैनी रोज़ आकार लेने लगी थी।
शादी ने सुरक्षा तो दी थी… पर वो धड़कन नहीं, जो कभी सिर्फ़ “प्यार” से आती है।
भाग 2: जब अतीत ने दरवाज़ा खटखटाया
नेहा फ़ेसबुक पर स्क्रॉल कर रही थी,
तभी एक मैसेज आया —
“क्या अब भी वो पायल पहनती हो?”
नाम था — आकाश।
कॉलेज का पहला प्यार।
पहला स्पर्श, पहली कविता… और पहली चोट भी।
उस मैसेज ने जैसे कोई बंद दरवाज़ा फिर से खोल दिया।
होठों पर एक मुस्कान थी — और दिल में हल्की सी चुभन।
भाग 3: जब बीते पल फिर से आने लगे
आकाश से बातें फिर शुरू हुईं।
धीरे-धीरे, चुप्पियाँ भरने लगीं।
आकाश ने लिखा —
"तू अब भी वैसी ही है, बस थोड़ा थक गई है नेहा…"
नेहा अंदर ही अंदर पिघलने लगी।
जिस जुड़ाव को वो सालों से तरस रही थी, वो फिर से मिलने लगा —
बिना मांगे… बिना कहे…
भाग 4: जब साया सामने आ गया
आकाश शहर आया।
कॉफी शॉप में मिलने की जिद की।
7 साल बाद, एक ही टेबल पर — दो अधूरी कहानियाँ।
आकाश बोला —
"क्या दिल में अब भी कोई कोना मेरा है?"
नेहा ने सिर झुकाया —
"मैं भूली नहीं… लेकिन अब मैं विवेक की पत्नी हूँ… और वो बहुत अच्छा इंसान है।"
आकाश ने सिर्फ़ एक बात कही —
"क्या अच्छा इंसान होना ही काफी होता है?"
वो सवाल, नेहा के दिल में गूंजता रहा।
भाग 5: जब मन दो राहों में बँट गया
नेहा अब दो अलग धड़कनों के बीच जी रही थी —
विवेक का स्थायित्व… और आकाश का ज्वार।
एक उसे थामे रखता था,
दूसरा उसे उड़ने देता था।
हर रात उसका अंत एक ही सवाल पर होता —
"क्या ये भावनाएं गलत हैं? या मैं भी एक इंसान हूँ?"
भाग 6: जब सच सामने आया
विवेक ने एक रात हल्की मुस्कान के साथ पूछा —
"नेहा, तू आजकल बहुत थकी-थकी सी क्यों लगती है? क्या सब ठीक है?"
नेहा की आँखें भर आईं।
वो बोली —
"मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती… पर मैं पूरी तरह से सिर्फ तुम्हारी भी नहीं रही… मैं किसी और से बंधी हूं — एहसासों में।"
कुछ पल का मौन।
फिर विवेक ने बस इतना कहा —
"तू मेरी पत्नी है, लेकिन मैं तेरा मालिक नहीं…
अगर कोई कोना खाली हो, तो उसे सच्चाई से भर… अधूरा मत छोड़।"
भाग 7: जब नेहा ने खुद को चुना
नेहा ने आकाश से आख़िरी बार मिलने का वक़्त माँगा।
उसने कहा —
"आकाश, तू मेरी अधूरी कविता जैसा है… लेकिन अब मैं खुद को पूरा कर चुकी हूं — विवेक के साथ।
मैं तुझे चाहती थी… पर शायद खुद से ज़्यादा नहीं।"
आकाश की आंखें भीगी थीं —
"इस बार तू टूटी नहीं… तू खुद को पा गई है, यही मेरी जीत है।"
भाग 8: जब रिश्ते सच के साथ फिर से जन्म लेते हैं
अब नेहा विवेक के साथ है।
रिश्ते में झूठ नहीं है… न भावनाओं का बोझ।
अब वो सिर्फ पत्नी नहीं है,
एक औरत है जिसने अपनी हर परत को समझा और स्वीकार किया।
उसने साबित किया —
प्यार सिर्फ़ देह का नहीं, आत्मा का भी रिश्ता होता है।
अंतिम पंक्तियाँ — दिल को छू लेने वाली बातें
🕯️ एक औरत एक समय में दो दिलों से जुड़ सकती है…
लेकिन उसकी सच्ची वफादारी उस रिश्ते से होती है,
जहाँ वो खुद को खोए बिना जी सके।
💔 प्यार हमेशा पाना नहीं होता,
कभी-कभी किसी को छोड़ देना भी सबसे बड़ा प्यार होता है…
ताकि कोई अधूरा ना रहे।
❤️ अगर नेहा की कहानी ने आपके दिल को छुआ हो,
तो इसे LIKE करें, SHARE करें —
क्योंकि शायद कहीं कोई और “नेहा” भी खुद से लड़ रही हो… और उसे सिर्फ़ एक सच्ची कहानी की रोशनी चाहिए।
Comments (0)
Login to comment.
Share this post: