हम इस सच्चाई से आँखें कब तक चुराते रहेंगे?
दिल्ली के जीबी रोड की काली सच्चाई
वो शाम मैं कभी नहीं भूल सकता। दिल्ली की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से थोड़ी दूर, एक ऐसी जगह जहाँ रोशनी कम और छायाएँ गहरी हैं। जीबी रोड—एक नाम जिसे सुनकर लोग या तो मुस्कुरा देते हैं या फिर नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं। मैं वहाँ जाने का इरादा नहीं रखता था, लेकिन कभी-कभी ज़िंदगी आपको ऐसी जगह खींच ले जाती है जहाँ आपका दिल नहीं जाना चाहता।
गलियों में घुसते ही एक अजीब सी गंध हवा में तैर रही थी—पसीने, परफ्यूम और उमस का मिलाजुला असर। दीवारों पर पुराने पोस्टर चिपके थे, जिनके रंग उतर चुके थे। कुछ खिड़कियों से हल्की रोशनी झाँक रही थी, और उनमें खड़ी लड़कियाँ... उनकी आँखों में एक अजीब सी खालीपन था, जैसे वो देख रही हों पर देख नहीं रही हों।
एक लड़की, शायद बीस साल की, दरवाज़े पर खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कान में एक झूठ था, एक ऐसा नाटक जिसे वो बार-बार दोहराती होगी। उसने मेरी तरफ देखा और आवाज़ लगाई, "आ जाओ, बैठ जाओ।" मैं वहाँ रुका नहीं, बस चलता रहा, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे पीछे चिपक गई।
आगे एक चाय की दुकान थी। बूढ़ा दुकानदार चुपचाप केतली को चलाता रहा। मैंने एक कप चाय माँगी और पूछा, "यहाँ का माहौल हमेशा ऐसा ही रहता है?" उसने बिना मेरी तरफ देखे जवाब दिया, "साहब, यहाँ दिन-रात एक जैसे ही होते हैं। रात को रोशनी जलती है, दिन में छायाएँ।"
वहाँ की औरतें... कुछ बच्चियाँ अभी-अभी इस दुनिया में आई थीं, तो कुछ की आँखों में सालों का थकान झलकता था। वो बेचारगी नहीं थी, बल्कि एक सूनापन था—जैसे वो अपनी ही ज़िंदगी से बाहर खड़ी हों। कुछ ग्राहकों के साथ हँस रही थीं, लेकिन उनकी हँसी में वो मासूमियत नहीं थी जो कभी उनकी होगी।
एक कोने में एक बच्चा खेल रहा था। शायद किसी वेश्या का बेटा। उसे नहीं पता होगा कि उसकी माँ का काम क्या है। उसके लिए तो ये गली बस एक खेलने की जगह है। मैं सोचने लगा—क्या इस बच्चे का भविष्य भी इसी गली की मिट्टी में दब जाएगा?
वहाँ के दलाल, जिन्हें "मालिक" कहा जाता है, आँखें तरेरते हुए घूम रहे थे। उनकी नज़रें हर लड़की पर थीं, जैसे वो उनकी ज़िंदगी के मालिक हों। कुछ लड़कियाँ शायद यहाँ खुद की मर्जी से नहीं आई थीं। कहीं से खरीदकर लाई गई होंगी, या फिर मजबूरी ने यहाँ धकेल दिया होगा।
चाय खत्म करके मैं वापस मुड़ा। उसी लड़की ने फिर मुझे देखा, इस बार उसकी मुस्कान नहीं थी। शायद उसे लगा कि मैं कोई ग्राहक नहीं, बस एक तमाशबीन हूँ। उसकी आँखों में एक सवाल था—"तुम यहाँ क्यों आए हो?"
जीबी रोड सिर्फ एक जगह नहीं, एक सच्चाई है। ये वो दुनिया है जिसे हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन ये हमारे समाज का ही हिस्सा है। यहाँ की लड़कियाँ सिर्फ "वस्तु" नहीं हैं, वो भी किसी की बेटी, किसी की माँ हैं। शायद कभी किसी के सपने थे उनके भी।
मैं वहाँ से चला आया, लेकिन उन आँखों की छाया मेरे साथ चल पड़ी। हम सबकी ज़िंदगी में कुछ ऐसी तस्वीरें होती हैं जो दिल से नहीं मिटतीं। जीबी रोड की वो शाम अब मेरे लिए सिर्फ एक जगह नहीं, एक सवाल है—हम इस सच्चाई से आँखें कब तक चुराते रहेंगे?
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