बस एक Royal Enfield Classic 350, 10 दिन, 3,000 किलोमीटर से ज़्यादा का सफर, और पहाड़ों से मिलने की ज़िद।
दिल्ली से लेह लद्दाख की 10 दिनों की बाइक यात्रा
पिछले तीन साल से मैं इस यात्रा का सपना देख रहा था। हर बार जब मैं इंस्टाग्राम पर बाइक की तस्वीरें देखता, जो सुनसान पहाड़ी रास्तों पर खड़ी होती थीं और आसमान दूर तक फैला होता था, तो एक अजीब सी ख्वाहिश जागती थी। इस बार जून में, मैंने सोचना बंद किया और निकल पड़ा — दिल्ली से लेह लद्दाख की बाइक यात्रा पर।
योजना क्या थी?
बस एक Royal Enfield Classic 350, 10 दिन, 3,000 किलोमीटर से ज़्यादा का सफर, और पहाड़ों से मिलने की ज़िद।
दिन 1-2: दिल्ली से मनाली – शुरुआती सफर
दिल्ली से सुबह 4 बजे निकलना आसान नहीं था, लेकिन जल्दी निकलने का फायदा यह हुआ कि ट्रैफिक नहीं मिला। बाइक मैंने करोल बाग से किराए पर ली थी, ₹1,500 प्रतिदिन — इस एडवेंचर के हिसाब से बिलकुल ठीक।
चंडीगढ़ तक की सड़कें अच्छी थीं, लेकिन उसके बाद मनाली की ओर चढ़ाई शुरू होते ही असली मज़ा आया। घुमावदार पहाड़ी रास्तों ने पहला टेस्ट दे दिया।
शाम तक मनाली पहुंच गया। Old Manali में ₹800 में एक गेस्टहाउस में रुका — सादा कमरा, लेकिन पहाड़ों का नज़ारा शानदार था।
दिन 3: मनाली से जिस्पा – असली चुनौती शुरू
अब असली एडवेंचर शुरू हुआ। रोहतांग पास (13,050 फीट) पार करना पहली बार था। बाइक को भी ऊंचाई की वजह से दिक्कत हो रही थी और मुझे भी।
रोहतांग से कीलोंग तक का रास्ता बिल्कुल पगला देने वाला था — कीचड़, पत्थर, पानी के बहाव। बाइक तो लग रहा था जैसे किसी जंग से लौटी हो, लेकिन नज़ारे? अद्भुत। ऐसा कुछ आपने पहले कभी नहीं देखा होगा।
शाम को जिस्पा पहुंचा। छोटा सा गांव, सादा रहना, लेकिन गर्म दाल-चावल ने दिन बना दिया।
दिन 4: जिस्पा से सरचू – कुछ नहीं है यहाँ, फिर भी सब कुछ है
सुबह जल्दी निकल पड़ा क्योंकि सभी ने कहा था कि यह रास्ता कठिन है। और वो सही थे।
बरालाचा ला (16,040 फीट) पार करना एक अलग ही एहसास था। ना पेड़, ना घास — बस पत्थर और आसमान।
सरचू में टेंट कैंप में ₹1,200 में रात बिताई, जिसमें खाना भी शामिल था। बाथरूम साझा थे, लेकिन ऐसी जगह पर ज़्यादा उम्मीद भी नहीं कर सकते।
दिन 5: सरचू से लेह – सबसे कठिन दिन
इस दिन ने मुझे तोड़ा भी और फिर जोड़ा भी। टंगलांग ला (17,582 फीट) जैसे हाई अल्टीट्यूड पास को पार करना आसान नहीं था।
बाइक बार-बार रुक रही थी, मुझे भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। हर 20 मिनट पर रुकना पड़ता।
लेकिन जब ऊपर पहुंचा और वो बोर्ड देखा, तो दिल भर आया — “मैंने कर दिखाया।”
लेह की ओर उतरना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण था। लेकिन आखिरकार शाम 4 बजे के आसपास लेह पहुंच गया — थका हुआ, लेकिन बेहद खुश।
दिन 6-7: लेह में आराम और घुमाई
लेह में दो दिन आराम किया और थोड़ा शहर घूमने का भी मौका मिला। लेह पैलेस देखा, लोकल मार्केट घूमा और शानदार मोमोज़ खाए।
₹1,000 में एक गेस्टहाउस में रुका जो मुख्य बाज़ार के पास था — गर्म पानी और सफाई, ये ही काफी था।
दिन 8: खारदुंग ला – दुनिया की सबसे ऊंची सड़क
लेह से 40 किलोमीटर दूर है खारदुंग ला, जो 18,379 फीट की ऊंचाई पर है। यहां बाइक चलाना बहुत बड़ा चैलेंज था।
रास्ता बहुत खतरनाक था — एक तरफ गहरी खाई और दूसरी तरफ बर्फ। लेकिन ऊपर पहुंचते ही जो फीलिंग आई, वो ज़िंदगी भर याद रहेगी। वहाँ की तस्वीरें तो लेना ही था!
नीचे उतरना और भी मुश्किल था। ब्रेक्स ज़्यादा काम कर रहे थे और हवा भी पतली थी, लेकिन सुरक्षित वापस लेह लौट आया।
दिन 9: लेह से कीलोंग – वापसी की शुरुआत
अब वापसी का समय था। अब मैं पहाड़ों को समझ चुका था। डर नहीं था, सिर्फ मज़ा और शांति थी।
हर पास, हर मोड़ अब पहले से आसान लग रहा था।
दिन 10: कीलोंग से दिल्ली – अलविदा पहाड़ों
प्लेन में लौटते ही सब कुछ बदल गया। फिर से पेड़, भीड़, और घना वातावरण। मन थोड़ा भारी था, लेकिन अपने बिस्तर और शावर की भी तलब थी।
रात 10 बजे के करीब दिल्ली पहुंचा — थका हुआ, लेकिन दिल में ढेर सारी यादें लिए हुए।
यात्रा का सार
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कुल दूरी: लगभग 3,200 किलोमीटर
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फ्यूल खर्च: ₹7,000–8,000 (35 km/l के औसत पर)
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कुल खर्च: ₹35,000 के आस-पास (बाइक किराया, पेट्रोल, खाना, रहना)
अंतिम अनुभव
क्या मैं फिर जाऊँगा? बिल्कुल। अगली बार दोस्तों के साथ प्लान है।
इस यात्रा ने मुझे बदला है — अंदर से। जब आप ऐसे जगहों से गुजरते हो, जहाँ बस आप और आपकी बाइक होती है, तो आप खुद से जुड़ने लगते हो।
अगर आप भी ये यात्रा करना सोच रहे हैं, तो अब और मत सोचिए — बस निकल पड़िए। हां, ये कठिन है। हां, ये थोड़ा महंगा है। लेकिन यकीन मानिए, ये आपकी सोच और आत्मविश्वास को एक नया स्तर दे देती है।
कैमरा शायद वो जादू ना पकड़ पाए, लेकिन दिल हर पल संजो लेगा।
कभी-कभी ज़िंदगी को रीसेट करने के लिए ऐसे सफर ज़रूरी होते हैं — और ये सफर मेरे लिए वही था।
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